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कांटेस्ट- “नवरचना”

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“नवरचना ”
नवयौवना अल्हड़ सी
नवरस – रंग सुंदर सी
नवदुल्हन सी सरसती
नवस्पर्श संग लरजती
नवजीवन रख फलती
नवरचना जब जनमती
तब
नवभोर सी अभिलाषी
नव-राह भी दिखलाती
संस्कार शिरा बांध
युवा हृदय को झंकार
नवयुग रच
चहुँ ओर , धरा – आकाश छा जाती
नववर्ष मंगलगान सी
सृजनात्मक कर्म पटल का श्री गणेश करती।।
– विधु गर्ग

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