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“कितना खोखला कितना वास्तविक है यह गणतंत्र ”
लगभग एक शताब्दी के संघर्ष एवं बलिदानों के फलस्वरूप जन – गण – मन की अवधारणा राष्ट्र में गणतंत्र के रूप में फलीभूत हुई।
स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय, सामाजिक एवं राजनेतिक उत्थान को समर्पित, विश्व के अनेकों लिखित /अलिखित संविधानों के गहन अध्यन एवं विश्लेषण के पश्च्यात स्वनिर्मित संविधान २६ जनवरी १ ९ ५ ० को लागू कर के भारतीय लोकतंत्र को गणतंत्र के साथ समावेशित कर आम भारतीय को प्रत्यक्ष सत्ता की शक्ति से जोडने का भाव प्रतिपादित किया गया।
विश्व के सबसे बड़े लिखित संविधान निर्माताओं की उत्क्रष्ट सोच का आधार यही था कि सदेव राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा जाए और गणतंत्र के माध्यम से स्वतंत्र भारत राष्ट्र के रूप में उच्त्तम शिखर पर पहुंचे और समाज का अंतिम जन बौद्धिक एवं आर्थिक स्तर पर समृद्ध हो सके।
इसी उपलक्ष में गणतंत्र दिवस के माध्यम से राष्ट्रीय पर्व के रूप में इसे भारतीय जन मानस द्वारा बहुत उल्लास से मनाने की परंपरा स्थापित हुई।
गणतंत्र से आशय बिना किसी भेदभाव, पूर्वागृह के स्वतंत्र भारत का कोई भी नागरिक धर्म, जाति , राजनैतिक विचारधारा , वंशवाद , लिंग भेद , अमीरी – गरीबी आदि जैसे बंधनों के परे राष्ट्र की सर्वोच्च सत्ता पर आसीन होने की क्षमता रखता है। गणतंत्र की इस वास्तविक शक्ति ने राष्ट्र को, बहुत बार समृद्ध भी किया है।
पीढ़ियों के सक्रिय संघर्ष के पश्चात् विदेशी गुलामी से तो मुक्ति प्राप्त कर ली परन्तु राष्ट्र ने स्वतंत्रता उपरांत आंतरिक , मानसिक , नैतिक कमज़ोरियों यथा स्वार्थ सत्ता – लोलुपता, लालच आदि के वशीभूत समाज, जाति, धर्म, भाषा आदि के दलदल में धंस, आर्थिक विषमता के जाल में घिर गया है। “घुन” स्वरुप नैतिक कमज़ोरियाँ किसी भी सुदृढ़ समाज या व्यवस्था को “खोखला ” करने की शक्ति रखती हैं। हमारी गणतंत्र वयवस्था पर भी यह खोखलापन स्पष्ट दृष्टि गोचर है।जिसके फलस्वरुप, राष्ट्रिय स्तर पर कई समस्याएं विकराल रूप धारण किये हुए हैं और विश्व स्तर पर, राष्ट्र की सम्प्रभु शक्ति की, अवहेलना कर दी जाती है। फिर भी राष्ट्र विकास के क्रम में कर्म के लगभग सभी क्षेत्रों में गण ने तंत्र की सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही व्यवस्थाओं के अंतर्गत विश्व स्तर की उचाईयों को प्राप्त किया है।
हमारा संविधान हमें यह ध्यान दिलाता है कि राष्ट्र के सम्पूर्ण विकास के लिए उसमे मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक तत्वों का समावेश है जिसके आधार पर व्याप्त त्रुटियों को दूर करने का साहस और शक्ति जन जन में समाहित है। गणतंत्र कि वास्तविक शक्ति को पहचानते हुए , राष्ट्र की प्राचीन शिक्षा और गौरव को ध्यान में रखते हुए आधुनिकतम तकनीक को साधन बनाते हुए आरोप – प्रत्यारोप से बचकर नैतिक मूल्यों को स्थापित कर के हर स्तर पर स्वयं संघर्ष करके राष्ट्र की अस्मिता कि रक्षा की जानी चाहिए।
गणतंत्र दिवस की परेड से मात्र प्रतीकात्मकता के रूप में ही न जुड़ कर , युद्ध स्तर पर वास्तविक क्षमता से योगदान की आवश्यकता है ताकि अब हम गणतंत्र को वास्तविक रूप से विस्तारित कर पाएं।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
विधु गर्ग
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