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बाज़ार की भाषा ?
“हिंदी बाज़ार की भाषा है , गर्व की नहीं”, या “हिंदी गरीबों अनपढ़ों की भाषा बन कर रह गयी है “- क्या कहना है आपका ?
यह विचार , भ्रमवश किया गया मिथ्याभिमान ग्रसित ,भ्रामक प्रचार तो हो सकता है किन्तु सचाई नहीं !वास्तव मैं हिंदी हमारे जीवन मैं रची बसी है ! थोडा विस्तार मैं जाने से पहले हिंदी के एतिहासिक तथ्यों को जानने का प्रयत्न करते हैं ! हिंदी संस्कृत की अनुगामिनी है !विशुद्ध संस्कृत मैं विशेषता यह है कि कम से कम शब्दों मैं अधिक से अधिक गहरी और तथ्यात्मक सटीक बात कही जा सकती है !प्राचीन समय में हमारे ऋषि मुनि ही किसी भी विषय पर अपनी आन्तरिक एवं बाह्य शक्ति के द्वारा “तप ” के माध्यम से शोध करते थे और फिर उसके परिणामों को संस्कृत में लिपिबद्ध करते थे ! इसके साथ ही उन्हों ने सरल व् सहज वार्तालाप के लिए प्राकृत को प्रोत्साहित किया !
भगवान् बुद्ध और महावीर ने जन जन तक अपने सन्देश और उपदेशों के लिए प्राकृत को ही अपने माध्यम बनाया !
सामान्यत : प्राकृत कि अंतिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिंदी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है ! स्थानीय प्राकृत कि अपभ्रंश अवस्था का ही मुग़ल काल में हिंदी नाम पड़ गया क्योंकि भारत हिन्दुस्थान कहलाना शुरू हुआ और स्थानीय भाषा हिंदी कहलाने लगी ! कालांतर में हिंदी साहित्य उत्तरोत्तर सम्रद्ध होता गया ! मुग़ल काल में हिंदी नें सामान्य बोल-चाल में उर्दू के भी बहुत से शब्द अपने अन्दर समाहित कर लिए और फिर आधुनिक परिद्रश्य में अंग्रेजी के शब्दों से भी कोई बैर नहीं रखा !
यह एक स्वाभाविक अनुभव कि बात है कि जब किसी विषय पर “गंभीर चिंतन – मनन” किया जाता है तब भाषा का शुद्ध स्वरुप विषय सन्दर्भ मैं उच्च कोटि का प्रभाव उत्पन्न करता है ! इसीलिए यह आवश्यक प्रतीत होता है कि “टीवी” चैनलों पर समसामयिक विषयों पर नियमित रूप से विद्वानों द्वारा हिंदी भाषा के लगभग शुद्ध स्वरुप में भी वार्तालाप हो ताकि मिथ्याभिमान ग्रसित तथाकथित बुद्धिजीवियों को भी यह आभास हो सके की वर्कश वाही दीर्घजीवी होता है , जिसकी जड़े धरती के अन्दर तक गहरे मैं जाती हैं , मौसमी फूलों के पौधे तो एक मौसम में अपनी छटा बिखेर पाते हैं !
हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिस पर सवाथिक आक्रमण हुए तथा आज भी इस पर आक्षेप लगाने की चेष्टा की जा रही है ! इसके साथ ही यह बहुत गर्व की बात है कि हिंदी आज भी सम्पूर्ण सम्मानजनक स्थिति मैं है ! हिंदी इतनी समर्थ भाषा है और हिंदी ही इतनी व्यापक भाषा है कि “बाज़ार ” को हिंदी की शरण मैं आना ही पड़ता है !यह हिंदी की आवश्यकता नहीं है कि हिंदी को बाज़ार कि भाषा बन कर रहना पड़े !यह भी सत्य है कि कोई भी बड़ी से बड़ी बात अगर व्यापक स्तर पर रखनी है और लोगों के दिलों तक पहुंचानी है उसके लिए हिंदी का ही सहारा लेना पड़ता है ! ये हिंदी के गौरव को ही दर्शाता है !
यह कहना कि “हिंदी गरीबों अनपढ़ों की भाषा बन कर रह गयी है ” बहुत ही स्तरहीन बात है !किसी भी राष्ट्र और समाज मैं गरीब और अनपढ़ न हों ऐसा हो नहीं सकता किन्तु उनको भाषा के आधार पर रेखांकित करना बहुत ही हास्यास्पद बात है ! जबकि हिंदी इतनी उन्नत और सहज भाषा है की बड़े से बड़ा विद्वान और बिलकुल अनपढ़ भी उतनी ही गहराई और सहजता से समझ सकता है ! यह तथ्य हिंदी भाषा की वैज्ञानिकता को भी प्रमाणित करता है !बड़ी से बड़ी व्यवसायिक इकाइयों में आज भी प्रशिक्षण शिविर आदि में हिंदी और संस्कृत के उद्धरण लिए जाते हैं !
आज की पीढ़ी मात्र अंग्रेजी ज्ञान के आधार पर ही ,अपने को श्रेष्ठ दिखाने का यत्न करने में लगी हुई है जबकि इसी पीढ़ी के पहले तक की पीढियां , स्थानीय भाषाओँ की जानकारी व् बोल चाल के साथ साथ , हिंदी , अंग्रेजी और उर्दू में भी समान अधिकार रखती थीं !
प्रत्येक भाषा सम्मानजनक होती है, क्योंकि भाषा ही वह माध्यम है जो विचारों को पोषित करती है तथा कार्यों को संपन्न कराती है ! आज की छोटी सी खुली दुनिता में ,मातरिये – भाषा और राष्ट्र भाषा का गर्व के साथ प्रयोग करते हुए अंतर्राष्ट्रीय भाषाओँ का ज्ञान व प्रयोग भी ज़रूरी है ! किन्तु मातरिये – भाषा और राष्ट्र भाषा का महत्व कम करने की चेष्टा करते हुए केवल अंतर्राष्ट्रीय भाषाओँ का महिमामंडन करना निसंदेह एक निंदनीय अपराध की श्रेणी में ही आता है !
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