Menu
blogid : 16012 postid : 613865

सम्मान जनक भाषा हिंदी

Hindi
Hindi
  • 8 Posts
  • 8 Comments

हिंदी आज भी सम्मान जनक भाषा के रूप में मुख्यधारा में ही है, व मात्र दृष्टिकोण बदलने के साथ ही पुन: उच्च स्तर पर प्रतिष्ठित हो सकती है ! ज़रुरत केवल, थोडा अलग हट कर दिखने या पढ़े लिखे नज़र आने का ” दिखावा ” कम करने की है ! इसके साथ ही अंग्रेजी के प्रति
“मानसिक दासता” से मुक्ति पाने की भी अति आवश्यकता है ! सच्चाई यही है कि एक बार अंग्रेजी आने का “दिखावा ” करने के बाद, “हिंदी जानने वाला व्यक्ति “, भले बड़े से बड़े पद पर बैठा हो , बड़ा व्यवसायी हो, क्षेत्र विशेष का विशेषज्ञ हो , वह आज भी अपनी बात हिंदी में ही आगे बढ़ाता है !
उच्च कोटि का “हिंदी साहित्य” लिखा भी जा रहा है और छप भी रहा है ! यह बात अलग है कि आज के प्रचारवादी युग में उसका इतना प्रचार नहीं हो पा रहा है और अंग्रेजियत में पला बढ़ा युवा वर्ग उसको समझने में अपने आप को असमर्थ पाता है !
यही एक विचारणीय बिंदु है जिस पर राष्ट्र के विद्वानों और विशेषज्ञों और सरकारी उच्च प्रतिनिधियों को ध्यान देने व हिंदी के प्रति अपनी प्रतिबद्ध्यता स्पष्ट करने की आवश्यकता है ! इनके द्वारा जन साधारण में यह स्पष्ट सन्देश जाना अति आवश्यक है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी काम की भाषा हो सकती है किन्तु राष्ट्रीय स्तर पर महात्मा गाँधी की गहनदृष्टि द्वारा विश्लेषित “सहज सरल सर्वग्राही हिंदी” ही हमारी भाषा है !हमारे प्रबुद्ध और परिपक्व माननीय नेता अभिनेता खिलाडी नौकरशाह विशेषज्ञ आदि मिथ्या अंग्रेजी मोह त्याग कर हिंदी को ही अधिकाधिक प्रयोग में लायें !वह लोग लोकप्रिय इसलिए नहीं हैं कि वह साक्षात्कार अंग्रेजी में देते हैं अपितु वह “हिंदी माध्यम” का प्रयोग करते हुए अपनी बातों और किये हुए कार्य से लोगों के दिलों में राज करते हैं!
जहाँ तक प्रश्न है अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी प्रयोग करने का, यह प्रशिक्षण किसी भी बच्चे को कक्षा एक से कक्षा छ: तक में सहज निपुण कर देता है इसके बाद का अधिकाधिक पाठ्यक्रम हिंदी में हो और शुरुआत में पाठ्यक्रम का कुछ हिस्सा अंग्रेजी में हो तो फल स्वरुप हिंदी का भाषा ज्ञान सुद्रढ़ होगा और अंतर्राष्ट्रीय भाषा का भी ज्ञान बढेगा फिर हम राष्ट्रीय गरिमा से ओतप्रोत अंतर्राष्ट्रीय प्रतिद्वंदिता में भाषा की दृष्टि से अग्रणी रहेंगे !
जब किसी क्षेत्र पर आक्रमण होता है तब सबसे पहले स्थानीय धर्म संस्कृति और भाषा को नष्ट करने का प्रयास किया जाता है ! विश्विख्यात नालंदा विश्विद्यालय में ज्ञान-विज्ञान, साहित्य व भाषा का प्रचुर भंडार उपलब्ध था ! कहा जाता है कि उसको लूटने और नष्ट करने के उपरान्त भी लग-भग ३ माह तक उसकी आग बुझ नहीं पायी थी ! कल्पना ही की जा सकती है कि वहां कितनी अधिक लिखित सामग्री थी और यह सब संस्कृत और प्राकृत में तो थी !
विस्मित हो कर समय समय पर विदेशियों ने हमारे एकत्रित ज्ञान भंडार को लूटा भी है और नष्ट भी किया है , इस आधार पर कुछ हद तक यह कहना भी गलत नहीं होगा कि वेदों के समय के लिखे गए कई तथ्य पिछली ७-८ शताब्दियों में कई विज्ञान सम्मत प्रचारित सत्यों को स्थापित सहयोगी सिद्ध हुए और यह सारा ज्ञान भंडार किसी अन्य भाषा में न हो कर हमारी अपनी सम्रद्ध भाषा संस्कृत और प्राकृत में ही था! यह भ्रामक प्रचार स्वत: ही अपना अस्तित्व खोता प्रतीत होता है कि हिंदी में इतना सामर्थ्य नहीं कि वह समर्थ सिद्ध हो सकती है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर कि पुस्तकों का सटीक हिंदी अनुवाद नहीं हो सकता !
इतना अवश्य है कि स्थापित अंग्रेजी अभ्यासी लोगों को थोड़े अतिरिक्त प्रयास निश्चित रूप से करने होंगे तथा इसके साथ ही यह भी सत्य है कि बहुत बड़े स्तर पर हिंदी विचार मुखर हो उठेंगे जो निसंदेह राष्ट्र व समाज के लिए हितकारी सिद्ध होंगे ! हमारे संविधान निर्माताओं ने २०० वर्षों के अंग्रेजी शासन से मुक्ति के बाद आगे के १५ वर्षों के लिए अंग्रेजी भाषा को कामकाजी सहयोगी के रूप में ही अनुमोदित किया था ताकि हिंदी को बढ़ावा मिले और हिंदी ही मुख्य कामकाजी और सर्वप्रिय भाषा बने , किन्तु सरकारों और उच्च नौकरशाही की हिंदी के प्रति उदासीनता के चलते अंग्रेजी को ही अधिक महत्व दिया गया ! वास्तव में यह संविधान की मूल भावना के विपरीत है ! सरकार को चाहिए, हिंदी मंत्रालय व विभाग को मजबूत बनाये और अधिकाधिक हिंदी अनुवादकों की नियुक्ति करे तथा समयबद्ध तरीके से अधिक से अधिक सरल अनुवाद की प्रक्रिया आगे बढ़ाये ! हर स्तर पर हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दे ! अनावाशक हिंदी विरोध की अनदेखी करे !

” निज भाषा उन्नति अहे , सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के , मिटत न हिये को शूल “

भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने इस दोहे में भाषा की सम्पूर्ण व्याख्या कर दी है !

आज की युवा पीढ़ी को भी यह समझना होगा कि हमारा सच्चा सम्मान तभी है जब हम अपनी भाषा का मान रखें और हिंदी को अधिकाधिक सम्मान दें !अंग्रेजी हमारे काम की भाषा तो हो सकती है किन्तु “हिंदी ” हमारे संस्कार एवं सम्मान की भाषा है !

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh